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सनातन धर्म में दान की तीन ही गति मानी गई है। दान,भोग और नाश । दान सर्वोपरि है।

  • Pawan Dubey
  • Jan 2, 2024
  • 1 min read

सनातन धर्म में दान की तीन ही गति मानी गई है। दान,भोग और नाश । दान सर्वोपरि है। ज्योतिष शास्त्र का कथन है,कि जन्म कुंडली के बारहवें भाव पर,यदि देवगुरु बृहस्पति की दृष्टि पड़ जाए। तो ऐसा जातक दानी स्वभाव का होता है। और वही जन्म कुंडली के नवम भाव में, नवम भाव का स्वामी स्वगृही होकर के बैठा हो, अथवा नवम भाव का स्वामी जन्म कुंडली में उच्च राशि में बलवान होकर के बैठा हो, और ऐसी नवमेश पर, यदि शुभ ग्रह की दृष्टि पड़ जाए। तब भी जातक दान देने वाला होता है। और वह दान देने में कभी पीछे नहीं रहता। उसके पास जो हो, जितना हो, सदैव देने के लिए तत्पर रहता है।

 
 
 

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