देखा जाए मानव मात्र की जो आकांक्षा है,वह अनंत है।
- Pawan Dubey
- Jan 23, 2023
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देखा जाए मानव मात्र की जो आकांक्षा है,वह अनंत है। वह कभी समाप्त नहीं होती। एक समाप्त हो,तो दूसरी आकांक्षा उसके मन में जन्म ले लेती है,ज्योतिष शास्त्र का कथन है,कि 12 वे भाव का स्वगृही हो या मूलत्रिकोण का हो,या उच्च का हो,या वर्गोत्तमी हो ,अर्थात् बलवान हो,तो ऐसा जातक नि:संदेह परोपकारी स्वभाव का होता है,और उसके जीवन की समस्त आकांक्षा पूर्ण हो जाती है,क्योंकि धर्म से चार घर आ गई यानी नवम भाव से 4 घर आगे बारहवां भाव आता है,धर्म का सुख इंसान जब परोपकार करेगा,अच्छे कार्य करेगा,तो सीधी सी बात है,उसके जीवन में उसको सुख मिलेगा,और उसकी समस्त आकांक्षा पूर्ण हो जाएगी।

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