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अगर जन्म कुंडली के अष्टम भाव में बुध आदित्य योग बने, तो यह प्रवज्या योग की तरह काम करता है।

  • Pawan Dubey
  • May 2, 2023
  • 1 min read

अगर जन्म कुंडली के अष्टम भाव में बुध आदित्य योग बने, तो यह प्रवज्या योग की तरह काम करता है। और जातक को गृहस्थ आश्रम में रहते हुए ही जातक सन्यासी हो जाता है। अर्थात् सब कुछ उसके पास हो, लेकिन वह विरक्त होता है। सीधी सी बात है अष्टम भाव में सूर्य तटस्थ हो जाते हैं। मृत्यु भाव में आत्मा तटस्थ हो जाती है। और यज्ञ के स्वरूप है, बुध। यज्ञ अर्थात् विष्णु। अब इन दोनों का संबंध अष्टम भाव में बने। सीधी सी बात है। यह राजयोग है। जातक के पास होता सब कुछ है,लेकिन इन सभी चीजों से उसके अंदर विरक्ति आ जाती है। उसके ज्ञान,जानकारी, समझ उसको हो जाती हैं। फलत: उसके पास सब कुछ होते हुए भी,गृहस्थ आश्रम में रहते हुए,घर परिवार के बीच रहते हुए, विरक्त रहता है। इन सब चीजों से, एक समय के बाद इन सब चीजों का भोग वह नहीं करता। भोग करता भी है,तो उसमें आसक्ति नहीं होती, वरन् विरक्ति होती हैं।

 
 
 

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